पाठ का नामलेखक का नामजन्ममृत्युविधा
 पाठ-01
श्रम-विभाजन और जाती प्रथा
भीमराव अंबेडक14 अप्रैल, 1891 ई• (महू, मध्य प्रदेश)1956 ई• (दिल्ली) निबंध
पाठ-02
विष के दाँत
नलिन विलोचन शर्मा18 फरवरी, 1916 ई• (भद्रघाट, पटना)12 सितंबर 1961 ई•कहानी
पाठ- 03
भारत से हम क्या सीखें
मैक्समूलर (जर्मनी)6 दिसंबर 1823 ई•28 अक्टूबर 1900 ई•भाषण
पाठ- 04
नाखून क्यों बढ़ते हैं
हजारी प्रसाद द्विवेदी19 अगस्त 1907 ई• (बलिया, उत्तर प्रदेश)19 मई 1979 ई• (दिल्ली)ललित निबंध
पाठ- 05
नागरी लिपि
गुणाकर मुले3 जनवरी 1935 ई• (अमरावती महाराष्ट्र)16 अक्टूबर 2009 ई•निबंध
पाठ- 06
बहादुर
लेखक का नाम:- अमरकांत 1 जुलाई 1925 ई• (बलिया, उत्तर प्रदेश)17 फरवरी 2014 ई•कहानी
पाठ- 07
परंपरा का मूल्यांकन
रामविलास शर्मा10 अक्टूबर 1912 ई• (उन्नाव, उत्तर प्रदेश)30 मई 2000 • (दिल्ली)निबंध
पाठ- 08
जीत-जीत में निर्खत हूं।
पण्डित बिरजू महाराज4 फरवरी 1938 ई • (लखनऊ, उत्तर प्रदेश)1992 ई•साक्षात्कार
पाठ- 09
आविन्यों
अशोक वाजपेयी16 जनवरी, 1941 ई• (दुर्ग, छत्तीसगढ़) (मध्यप्रदेश) ? ललित रचना
पाठ- 11
नौबत खाने में इबादत
यतींद्र मिश्र1977 ई• (अयोध्या, उत्तर प्रदेश)? व्यक्ति चित्र
पाठ- 12
शिक्षा और संस्कृति
महात्मा गांधी2 अक्टूबर 1869 ई• (पोरबंदर)?
  1. लेखक किस विंडवना कि बात करते है ? वींड्वना का स्वरुप क्या है ? 

Ans :-डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जिस विदंबना की बात करते हैं वह जातिवाद का पोषक है। भारत में बहुत से ऐसे लोग हैं जो जात पात, छुआ – छुत की भावना रखता है। विदंबना का स्वरूप है कि कार्य कुशलता के आधार पर श्रम विभाजन  होना चाहिए ना कि जाति के आधार पर, क्योंकि श्रम विभाजन जाति प्रथा का दूसरा रूप है।

2. जातिवाद के पोषक उसके पक्ष में क्या तर्क देते हैं​ ?

Ans:- जातिवाद के पोषक का कहना है कि कार्य कुशलता और रुचि के आधार पर श्रमविभाजन होना चाहिए। क्योंकि श्रम विभाजन जातिप्रथा का दूसरा रूप है इसमें कोई बुराई नहीं है तथा जातिप्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक विभाग का भी रूप लिए हुए है ।

3. जातिवाद के पक्ष में दिए गए तर्कों पर लेखक की प्रमुख आपत्तियाँ क्या हैं ?

Ans:- लेखक डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का कहना है कि काम का विभाजन जाति के आधार पर नहीं होना चाहिए। क्योंकि जो जिस जात में जन्म लेता है वह अपने माता पिता के पेश के अनुसर उसी काम को करता है चाहे उसे काम में रुचि हो या नहीं और वह आगे बढ़ नहीं पाता है ।

4.जातिवाद भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप क्यों नहीं कहीं जा सकती है?

Ans:- जातिवाद भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभिमान रूप इसलिए नहीं कही गई है क्योंकि यह अपने रुचि के आधार पर नहीं है बल्कि जो काम पहले से माता-पिता करते आ रहे हैं वही काम करना पड़ता है चाहे उसमें रुचि हो या नहीं और वह अपने रुचि के अनुसार काम नहीं कर सकता इसलिए श्रम भजन को स्वाभाविक रूप नहीं कही गई है।

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